Sunday, March 17, 2013

मदारी

पोस्ट  रचियता ---    अंकित  कुमार विजय  
बिना सहारे और सीढ़ी के,
झटपट पेड़ों पर चढ़ जाता। 
बच्चों और बड़ों को भी ये, 
खों-खों करके बहुत डराता। 
  
कोई इसको वानर कहता, 
कोई हनूमान बतलाता। 
मानव का पुरखा बन्दर है, 
यह विज्ञान हमें सिखलाता। 
  
गली-मुहल्ले, नगर गाँव में, 
इसे मदारी खूब नचाता। 
बच्चों को ये खूब हँसाता,
पैसा माँग-माँग कर लाता।
 

  
कुनबे भर का पेट पालता, 
लाठी से कितना घबराता। 
तान डुगडुगी की सुन करके, 
अपने करतब को दिखलाता।

पलाश के फूल"


सबके लिए बसन्त कामौसम है अनुकूल।
फागुन में मन मोहतेये पलाश के फूल।१।
 
अंगारा सेमल हुआवन में खिला पलाश।
मन के उपवन में उठीभीनी मन्द-सुवास।२।
 
सरसों फूली खेत मेंपीताम्बर को धार।
देख अनोखे रूप कोभ्रमर करे गुंजार।३।
 
कुदरत ने पहना दियेनवपल्लव परिधान।
भक्त मन्दिरों में करेंहर-हरबम-बम गान।४।
 
खुश हो बेरी दे रहीबेरों का उपहार।
इन बेरों में है छिपाराम लखन का प्यार।५।
 
गेंहूँ लहराने लगेबाली पाकर आज।
मस्ती और तरंग मेंडूबा सकल समाज।६।
 
मौसम में उन्माद कीछाई हुई उमंग।
लोगों पर चढ़ने लगाअब होली का रंग।७।

"फागुन की फागुनिया लेकर, आया मधुमास!"


फागुन की फागुनिया लेकरआया मधुमास!
पेड़ों पर कोपलियाँ लेकरआया मधुमास!!

धूल उड़ाती पछुआ चलतीजिउरा लेत हिलोर,
देख खेत में सरसों खिलतीनाचे मन का मोर,
फूलों में पंखुड़िया लेकरआया मधुमास!
पेड़ों पर कोपलियाँ लेकरआया मधुमास!!

निर्मल नभ है मन चञ्चल हैसुधरा है परिवेश,
माटी के कण-कण मेंअभिनव उभरा है सन्देश,
गीतों में लावणियाँ लेकरआया मधुमास!
पेड़ों पर कोपलियाँ लेकरआया मधुमास!!

छम-छम कानों में बजती हैं गोरी की पायलियाँ,
चहक उठी हैंमहक उठी हैंसारी सूनी गलियाँ,
होली की रागनियाँ लेकरआया मधुमास!
पेड़ों पर कोपलियाँ लेकरआया मधुमास!!

जीवन-धरा


जीवन-धरा

यु नाखुस होकर चले
               उनके दर से
आप मिले तबियत बदल गई !
             अतीत के पन्नो में 
सिमट गई थी जिन्दगी
                       आप बढ़कर हाथ  रख दिए 
मेरे हाथो पे
 मैंने महसूस की जिन्दगी बदल गई !
दुनिया की भीड़ में 
                       खो गई थी  रूह मेरी 
आप मेरे साथ  आये 
जान आ गई !
जीवन भर गया सप्त्रंगों से 
यु आप जीवन में आये 
जीवन की धरा  बदल गई !  

...अब किसको ये खबर है


पीठ पीछे क्या होता है,अब किसको ये खबर है
रहनुमा बन के राह दिखाती,अपनी ये नजर है 

बस कदम है चलते और दिल है कही ठहरा हुवा
इसी खिचा-तानी से वाबस्ता हर एक बशर है 

नफरत के धारो में  है फसी,इंसानियत की कश्ती
डूबा के ही रख देता है एक दिन,ऐसा ये भंवर हैं

जिनको दिये थे  साये और पनाह इस पहलु में दी
उन्ही मुसाफिरों ने तोडा,दिल ऐसा एक शजर है 

अब क्या कहे "ठाकुर" दास्तान ए-गम-ए-जिंदगी
कितनी भी सुनाना चाहे जहाँ को,उतनी मुक्तसर है   

उम्र के पड़ाव

अंकित कुमार गुप्ता    दिनांक -1 7 march 2 0 1 3  
1
भारी बस्ते लिएदौड़ लगाते बच्चों को देखा,
फिर पढ़ाई ख़त्म करने के बाद....
ज़िंदगी की दौड़ में भागते युवाओं को देखा...
तो ये सवाल अक्सर मन में कुलबुलाया....

"नन्हें काँधे जब उठाएँ ...किताबों का बोझ...

काँधे रहते चुस्त... ज़हन होते ख्वाब गाह... !
ज़हन उठा ले जब... किताबों का वो बोझ....
क्यूँ... काँधे झुके ...ज़हन वीराना हो जाये...???"
2
उम्र के उस 'नाज़ुक दौर'...

यानी 'किशोरावस्थासे... गुज़रते बच्चों को देखा...
जब दिल सिर्फ़ अपनी सुनता है,
उसकी दुनिया सिर्फ़ उसके ख्वाब होते हैं...~
तो उनके इस ख़याल पर प्यार आया.....~

"चलो आज नींद से सुलह कर के देखें,

अपनी पलकों को ज़रा बंद कर के  देखें,
सुना है...बेघर हो गये हैं कुछ ख्वाब..,
आओ... आज उन्हें पनाह दे कर देखें...!"
3
उम्र का वो दौर... 

जब हम घर-गृहस्थी में उलझे हुए होते हैं,
अपने से ज़्यादा...अपने अपनों के लिए जीते हैं...~
तो अक्सर मन के किसी कोने में...ये तमन्ना बहुत है मचलती....~
"काश लौट आए वो बचपन सुहाना...
बिन बात खिलखिलानाहँसना....
हर चोट पे जी भर के रोना.... "
4
उम्र के उस पड़ाव पर...

जहाँ आँखें और दिल... सिर्फ़ और सिर्फ़ पीछे मुड़कर देखते हैं...
क्योंकि ...आगे देखने की नज़र शायद धुँधला चुकी होती है... 
और आस-पास बीमारियों के सिवा....या तो कोई दिखता नहीं...
या ज़्यादा देर टिकता नहीं...~
ये देखकर दिल के भीतर तक बस एक ही बात  है सालती ...~

"ज़िंदगी की सुबह...
जिनके हौसलों से आबाद हुई,
शाम ढले क्यों ज़िंदगी...
उनसे से ही बेज़ार हुई....???

पूजा-सी पावन लगे


1
नारी केवल तन नहीं ,नारी मन की धूप ।
मन में जिसके वासना ,कब पहचाने रूप  ।  ।
2
नवरात्र उपवास किए , मिटे न मन के ताप ।
पुरुष बनकरके नरपशु, फिर-फिर करता पाप ॥
3
नारी जननी पुरुष की ,ममता की आधार ।
बड़े भाग जिसको मिला,इसका सच्चा प्यार । ।
4
मस्तक पर धारण करूँ ,तेरे पग की धूल ।
प्यार-सुधा तेरा मिले , मिटते मन के शूल । ।
5
मन्दिर मैं जाता नहीं , निभा न पाता रीत ।
पूजा-सी पावन लगे  , मुझको तेरी प्रीत । ।
6
नारी के आँसू बहें , जलते तीनो लोक ।
नारी की मुस्कान से ,मिटते मन के शोक । ।
7

हारना नहीं


हारना नहीं
ये हसीन ज़िन्दगी,
स्वार्थी के लिए
कभी वारना नहीं।
नहीं जानते-
है तुझमें उजाला
हर पोर में
भरा सिन्धु बावरा ।
डूबने देना,
जो हैं छल से  भरे,
दिखाते दया
उन्हें तारना नहीं 
हारोगे तुम
हम हार जाएँगे
यूँ कभी नहीं
उस पार जाएँगे ।
काम बहुत
अभी करने हमें
घाव  बहुत
रोज़ भरने हमें
नम हों आँखें
तेरी भीगी हों पाँखें
उड़ते ही जाना है
मिलके चलें
भले राह कँटीली
और हठीली
कठिन है डगर
आओ बसाएँ
उजियारों से भर
इक नया नगर ।

Ho gayi Mohabbat Ittifaq Se

Ek Ittfak Sa Mere Dil Mein Yun Ghar Kar Gaya,
Jab Dekha Maine Tumhe Wahi Dobara Se,

Itne Khubsurat Ho Tum, Aur Kitne Ho Pyari Tum,
Sach Mein Ho Ya Phir Hum Miley Hai Ittifaq Se,

Ab Toh Dar Lagne Laga Hai Mohabbat Se,
Jabse Piya Hai Judai Ka Gham Ittifaq Se,

Pucho Zara Galib Se Ki,
Kya Wo Sach Main Mohabbat Karta Tha Ya Yuhi Likhta Gaya Ittifaq Se,

Per Kya Karu Ab,
Dil Ko Najane Kyu Masoom Lagti Ho Tum,

Bus Kahi Phir Mohabbat Na Ho Jaye Yuhi Ittifaq Se,
Man Yun Dhundtha Hai Tumhe,
Chupke Chupke Yaha Waha Idhar Udhar,
Aur Tum Mil B Jati Ho Ise Kya Kahu Chalo Keh Deta Hun Ittifaq Se,

Ab Toh Yakeen Nazane Kyu Hone Laga Hai Phir Se Mohabbat Pe,
Chodo Ab Dil Ko Hi Samjha Lenge Ho gayi Mohabbat Ittifaq Se