झूले,गीत,बहार सब,आम,नीम की छाँव |
हम से सपनों में मिला,वो पहले का गाँव ||
सूरज की पहली किरन,पनघट उठता बोल |
छेड़ें बतियाँरात की,सखियाँ करें किलोल ||
गगरी कंगन से कहे,अपने मन की बात |
रीती ही रस केबिना,बीत न जाए रात ||
अमराई बौरा गई, बहकी बहे बयार |
सरसों फूली सी फिरे,ज्यों नखरीली नार ||
कच्ची माटी, लीपना, तुलसी वन्दनवार |
सौंधी-सौंधी गंध से,महक उठे घर-द्वार ||
बेला भई विदाई की,घर-घर हुआ उदास |
बिटिया प चली,मन में लिए उजास ||
सो हर बन्ने गूँजते,आल्हा,होली गीत |
बजेचंग मस्ती भरे,कण-कण में संगीत ||
संध्या दीप जला गई, नभ भी हुआ विभोर |
उमग चली गौवत्सला,अपने घर की ओर ||
बहकी-बहकी सी पवन,महकी-महकी रात |
नैनन-नैन निहारते, तनिक हुई ना बात ||
नींद खुली, अँखियाँ हुईं, रोने को मजबूर |
लेकर थैली,लाठियाँ, गाँव नशे में चूर ||
जात-धर्म के नाम पर, बिखरा सकल समाज |
एक खेत की मेंड़ पर, चलें गोलियां आज ||
कैसेमैंधीरज धरूँ, दिखे न कोई रीत |
कैसेपाऊँ वही, सावन,फागुन,गीत ||
दिए दिलासा देरहे,रख मन मेंविश्वास |
हला! न हिम्मत हारिए,जलें भोर की आस ||
तम की कारा से निकल, किरण बनेगी धूप |
महकेगी पुष्पित धरा, दमकेगा फिर रूप ||
Ankit Vijay ke दिल का दर्द
जिन्दगी के उतार चढाव में झांकने की एक कोशिश का नाम है जीवन धारा
Wednesday, June 17, 2015
Sunday, March 17, 2013
मदारी
पोस्ट रचियता --- अंकित कुमार विजय

झटपट पेड़ों पर चढ़ जाता।
बच्चों और बड़ों को भी ये,
खों-खों करके बहुत डराता।
कोई इसको वानर कहता,
कोई हनूमान बतलाता।
मानव का पुरखा बन्दर है,
यह विज्ञान हमें सिखलाता।
गली-मुहल्ले, नगर गाँव में,
इसे मदारी खूब नचाता।
बच्चों को ये खूब हँसाता,
पैसा माँग-माँग कर लाता।
कुनबे भर का पेट पालता,
लाठी से कितना घबराता।
तान डुगडुगी की सुन करके,
अपने करतब को दिखलाता।
पलाश के फूल"
सबके लिए बसन्त का, मौसम है अनुकूल।
फागुन में मन मोहते, ये पलाश के फूल।१।
अंगारा सेमल हुआ, वन में खिला पलाश।
मन के उपवन में उठी, भीनी मन्द-सुवास।२।

सरसों फूली खेत में, पीताम्बर को धार।
देख अनोखे रूप को, भ्रमर करे गुंजार।३।
कुदरत ने पहना दिये, नवपल्लव परिधान।
भक्त मन्दिरों में करें, हर-हर, बम-बम गान।४।
खुश हो बेरी दे रही, बेरों का उपहार।
इन बेरों में है छिपा, राम लखन का प्यार।५।
गेंहूँ लहराने लगे, बाली पाकर आज।
मस्ती और तरंग में, डूबा सकल समाज।६।
मौसम में उन्माद की, छाई हुई उमंग।
लोगों पर चढ़ने लगा, अब होली का रंग।७।
"फागुन की फागुनिया लेकर, आया मधुमास!"
फागुन की फागुनिया लेकर, आया मधुमास!
पेड़ों पर कोपलियाँ लेकर, आया मधुमास!!
धूल उड़ाती पछुआ चलती, जिउरा लेत हिलोर,
देख खेत में सरसों खिलती, नाचे मन का मोर,
फूलों में पंखुड़िया लेकर, आया मधुमास!
पेड़ों पर कोपलियाँ लेकर, आया मधुमास!!
निर्मल नभ है मन चञ्चल है, सुधरा है परिवेश,
माटी के कण-कण में, अभिनव उभरा है सन्देश,
गीतों में लावणियाँ लेकर, आया मधुमास!
पेड़ों पर कोपलियाँ लेकर, आया मधुमास!!
छम-छम कानों में बजती हैं गोरी की पायलियाँ,
चहक उठी हैं, महक उठी हैं, सारी सूनी गलियाँ,
होली की रागनियाँ लेकर, आया मधुमास!
पेड़ों पर कोपलियाँ लेकर, आया मधुमास!!
जीवन-धरा
जीवन-धरा
यु नाखुस होकर चले
उनके दर से
आप मिले तबियत बदल गई !
अतीत के पन्नो में
सिमट गई थी जिन्दगी
उनके दर से
आप मिले तबियत बदल गई !
अतीत के पन्नो में
सिमट गई थी जिन्दगी
आप बढ़कर हाथ रख दिए
मेरे हाथो पे
मैंने महसूस की जिन्दगी बदल गई !
दुनिया की भीड़ में
खो गई थी रूह मेरी
आप मेरे साथ आये
जान आ गई !
जीवन भर गया सप्त्रंगों से
यु आप जीवन में आये
जीवन की धरा बदल गई !
...अब किसको ये खबर है
पीठ पीछे क्या होता है,अब किसको ये खबर है
रहनुमा बन के राह दिखाती,अपनी ये नजर है
बस कदम है चलते और दिल है कही ठहरा हुवा
इसी खिचा-तानी से वाबस्ता हर एक बशर है
नफरत के धारो में है फसी,इंसानियत की कश्ती
डूबा के ही रख देता है एक दिन,ऐसा ये भंवर हैं
जिनको दिये थे साये और पनाह इस पहलु में दी
उन्ही मुसाफिरों ने तोडा,दिल ऐसा एक शजर है
अब क्या कहे "ठाकुर" दास्तान ए-गम-ए-जिंदगी
कितनी भी सुनाना चाहे जहाँ को,उतनी मुक्तसर है
उम्र के पड़ाव
अंकित कुमार गुप्ता दिनांक -1 7 march 2 0 1 3
"ज़िंदगी की सुबह...
जिनके हौसलों से आबाद हुई,
शाम ढले क्यों ज़िंदगी...
उनसे से ही बेज़ार हुई....???
1
भारी बस्ते लिए, दौड़ लगाते बच्चों को देखा,
फिर पढ़ाई ख़त्म करने के बाद....
ज़िंदगी की दौड़ में भागते युवाओं को देखा...
तो ये सवाल अक्सर मन में कुलबुलाया....
"नन्हें काँधे जब उठाएँ ...किताबों का बोझ...
काँधे रहते चुस्त... ज़हन होते ख्वाब गाह... !
ज़हन उठा ले जब... किताबों का वो बोझ....
क्यूँ... काँधे झुके ...ज़हन वीराना हो जाये...???"
2
उम्र के उस 'नाज़ुक दौर'...
यानी 'किशोरावस्था' से... गुज़रते बच्चों को देखा...
जब दिल सिर्फ़ अपनी सुनता है,
उसकी दुनिया सिर्फ़ उसके ख्वाब होते हैं...~
तो उनके इस ख़याल पर प्यार आया.....~
"चलो आज नींद से सुलह कर के देखें,
अपनी पलकों को ज़रा बंद कर के देखें,
सुना है...बेघर हो गये हैं कुछ ख्वाब..,
आओ... आज उन्हें पनाह दे कर देखें...!"
3
उम्र का वो दौर...
जब हम घर-गृहस्थी में उलझे हुए होते हैं,
अपने से ज़्यादा...अपने अपनों के लिए जीते हैं...~
तो अक्सर मन के किसी कोने में...ये तमन्ना बहुत है मचलती....~
"काश लौट आए वो बचपन सुहाना...
बिन बात खिलखिलाना, हँसना....
हर चोट पे जी भर के रोना.... "
4
उम्र के उस पड़ाव पर...
जहाँ आँखें और दिल... सिर्फ़ और सिर्फ़ पीछे मुड़कर देखते हैं...
क्योंकि ...आगे देखने की नज़र शायद धुँधला चुकी होती है...
और आस-पास बीमारियों के सिवा....या तो कोई दिखता नहीं...
या ज़्यादा देर टिकता नहीं...~
ये देखकर दिल के भीतर तक बस एक ही बात है सालती ...~
भारी बस्ते लिए, दौड़ लगाते बच्चों को देखा,
फिर पढ़ाई ख़त्म करने के बाद....
ज़िंदगी की दौड़ में भागते युवाओं को देखा...
तो ये सवाल अक्सर मन में कुलबुलाया....
"नन्हें काँधे जब उठाएँ ...किताबों का बोझ...
काँधे रहते चुस्त... ज़हन होते ख्वाब गाह... !
ज़हन उठा ले जब... किताबों का वो बोझ....
क्यूँ... काँधे झुके ...ज़हन वीराना हो जाये...???"
2
उम्र के उस 'नाज़ुक दौर'...
यानी 'किशोरावस्था' से... गुज़रते बच्चों को देखा...
जब दिल सिर्फ़ अपनी सुनता है,
उसकी दुनिया सिर्फ़ उसके ख्वाब होते हैं...~
तो उनके इस ख़याल पर प्यार आया.....~
"चलो आज नींद से सुलह कर के देखें,
अपनी पलकों को ज़रा बंद कर के देखें,
सुना है...बेघर हो गये हैं कुछ ख्वाब..,
आओ... आज उन्हें पनाह दे कर देखें...!"
3
उम्र का वो दौर...
जब हम घर-गृहस्थी में उलझे हुए होते हैं,
अपने से ज़्यादा...अपने अपनों के लिए जीते हैं...~
तो अक्सर मन के किसी कोने में...ये तमन्ना बहुत है मचलती....~
"काश लौट आए वो बचपन सुहाना...
बिन बात खिलखिलाना, हँसना....
हर चोट पे जी भर के रोना.... "
4
उम्र के उस पड़ाव पर...
जहाँ आँखें और दिल... सिर्फ़ और सिर्फ़ पीछे मुड़कर देखते हैं...
क्योंकि ...आगे देखने की नज़र शायद धुँधला चुकी होती है...
और आस-पास बीमारियों के सिवा....या तो कोई दिखता नहीं...
या ज़्यादा देर टिकता नहीं...~
ये देखकर दिल के भीतर तक बस एक ही बात है सालती ...~
"ज़िंदगी की सुबह...
जिनके हौसलों से आबाद हुई,
शाम ढले क्यों ज़िंदगी...
उनसे से ही बेज़ार हुई....???
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