झूले,गीत,बहार सब,आम,नीम की छाँव |
हम से सपनों में मिला,वो पहले का गाँव ||
सूरज की पहली किरन,पनघट उठता बोल |
छेड़ें बतियाँरात की,सखियाँ करें किलोल ||
गगरी कंगन से कहे,अपने मन की बात |
रीती ही रस केबिना,बीत न जाए रात ||
अमराई बौरा गई, बहकी बहे बयार |
सरसों फूली सी फिरे,ज्यों नखरीली नार ||
कच्ची माटी, लीपना, तुलसी वन्दनवार |
सौंधी-सौंधी गंध से,महक उठे घर-द्वार ||
बेला भई विदाई की,घर-घर हुआ उदास |
बिटिया प चली,मन में लिए उजास ||
सो हर बन्ने गूँजते,आल्हा,होली गीत |
बजेचंग मस्ती भरे,कण-कण में संगीत ||
संध्या दीप जला गई, नभ भी हुआ विभोर |
उमग चली गौवत्सला,अपने घर की ओर ||
बहकी-बहकी सी पवन,महकी-महकी रात |
नैनन-नैन निहारते, तनिक हुई ना बात ||
नींद खुली, अँखियाँ हुईं, रोने को मजबूर |
लेकर थैली,लाठियाँ, गाँव नशे में चूर ||
जात-धर्म के नाम पर, बिखरा सकल समाज |
एक खेत की मेंड़ पर, चलें गोलियां आज ||
कैसेमैंधीरज धरूँ, दिखे न कोई रीत |
कैसेपाऊँ वही, सावन,फागुन,गीत ||
दिए दिलासा देरहे,रख मन मेंविश्वास |
हला! न हिम्मत हारिए,जलें भोर की आस ||
तम की कारा से निकल, किरण बनेगी धूप |
महकेगी पुष्पित धरा, दमकेगा फिर रूप ||
No comments:
Post a Comment